इन्सान
काले सफेद का भेद करनेवाला इन्सान!
प्रेम और तिरस्कार करनेवाला इन्सान!
अच्छाई और बुराई जाननेवाला इन्सान !
हंसी और आँसु दिखानेवाला इन्सान !
देव और राक्षस बतानेवाला इन्सान !
जब भी बनाया बनानेवालेने आज सोचता होगा वो क्या यही है वो, जो था अविष्कारो का अविष्कार करनेवाला अविष्कार इन्सान !!!
प्रेम और तिरस्कार करनेवाला इन्सान!
अच्छाई और बुराई जाननेवाला इन्सान !
हंसी और आँसु दिखानेवाला इन्सान !
देव और राक्षस बतानेवाला इन्सान !
जब भी बनाया बनानेवालेने आज सोचता होगा वो क्या यही है वो, जो था अविष्कारो का अविष्कार करनेवाला अविष्कार इन्सान !!!
ध्रुव और एकलव्य
चलो देर से ही सही पहचान तो हुई ध्रुव और एकलव्य की दुनिया को ज्ञान का आधारपर समाज मे स्थान प्राप्त करना और ज्ञान अहंकार ना होना यही हमारा आदर्श हो
किसी के हो न हो हमारे लिए तो वो आदर्श ही रहेंगे
चलो देर से ही सही पहचान तो हुई ध्रुव और एकलव्य की दुनिया को ज्ञान का आधारपर समाज मे स्थान प्राप्त करना और ज्ञान अहंकार ना होना यही हमारा आदर्श हो
किसी के हो न हो हमारे लिए तो वो आदर्श ही रहेंगे
देव और ऋषी
आज तक का ईतिहास उठा के देखो
वरदान हमेशा देवो ने दिये और शाप हमेशा ऋषीयो ने ,शायद इसिलिये सामान्य मनुष्य दुसरो मे भगवान ढूंढता है ऋषी नही
मतलब ज्ञान के साथ जिसके पास दुसरो का भला करने का नजरिया जरुरी होता है
आज तक का ईतिहास उठा के देखो
वरदान हमेशा देवो ने दिये और शाप हमेशा ऋषीयो ने ,शायद इसिलिये सामान्य मनुष्य दुसरो मे भगवान ढूंढता है ऋषी नही
मतलब ज्ञान के साथ जिसके पास दुसरो का भला करने का नजरिया जरुरी होता है
धर्म - पुर्वपश्चिमदक्षिणौतर
गोतास काळ असे माणसे आपल्याच धर्मात बघायला मिळतात कारण प्रत्येक माणसाला स्वतःचा तात्त्विक विचार करण्याची मुभा येथे आहे .ते तत्त्व जगासमोर मांडण्याची तसेच इतरांचे तत्त्व पटत नसल्यास त्या बाजूला सारण्याची मुभा येथेच आढळते , म्हणूनच कि काय वर्धमान महावीर (जैन ),गौतम बुद्ध (बौद्ध ), गुरू नानक(शीख ) यांनी त्यांच्या तत्वांचा धर्म बनवला पण त्यांनी किंवा इतरांनी त्यांचा तात्त्विक धर्म प्रत्यक्षरित्या लादल्याची कोठेही नोंद नाही. आणि ते ज्या धर्माच्या उणिवा शोधून त्यांच्या तात्त्विक धर्मात सामील झाले त्या धर्मालाही (हिंदू , वैदिक ) कोठेही प्रत्यक्ष किंवा अप्रत्यक्षरित्या हानी पोचावाल्याचे आढळत नाही वा अप्रत्यक्षरित्या हानी पोचावाल्याचे आढळत नाही .पण पाश्चिमात्य देशात उगम पावलेले धर्म हे (जेरुसलेम प्रदेश) मुळातच प्रसारासाठी आग्रही होते म्हणूनच मध्ययुगात मिशनरी, मदरशे यांनी त्या धर्माचा कडवा प्रचार केलेला आढळतो .
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